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🛕 धारी देवी मंदिर – उत्तराखंड की रक्षक देवी

उत्तराखंड की देवभूमि में बसे अनेकों मंदिरों में से एक विशेष और रहस्यमयी स्थान है – धारी देवी मंदिर। यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के श्रीनगर (गढ़वाल) के पास अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। श्रद्धालु इस मंदिर को गढ़वाल की रक्षक देवी मानते हैं और इस देवी को स्थानीय लोग “उत्तराखंड की आधी शक्ति” भी कहते हैं।


🌸 धारी देवी कौन हैं?

धारी देवी, माँ काली का एक रूप मानी जाती हैं। ऐसा विश्वास है कि माँ धारी देवी अपने उग्र रूप में बुराई का नाश करती हैं और शांत रूप में अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। देवी की मूर्ति मंदिर में केवल ऊपरी भाग (मस्तक से कमर तक) के रूप में स्थापित है, जबकि निचला भाग कालिमठ में पूजित होता है। यह भी माना जाता है कि दिन में देवी का स्वरूप बदलता है – सुबह वह बालिका के रूप में, दोपहर में युवती के रूप में और रात को वृद्धा के रूप में दिखाई देती हैं।


🛕 मंदिर का इतिहास और महत्व

धारी देवी मंदिर का नाम “धार” गाँव से लिया गया है, जो कभी इस क्षेत्र में स्थित था। कहा जाता है कि एक बार जब अलकनंदा नदी में बाढ़ आई थी, तब देवी की मूर्ति नदी में बहने लगी। जब स्थानीय लोगों ने मूर्ति को निकालने की कोशिश की, तो उन्होंने सुना कि देवी ने कहा, “जहाँ मुझे स्थापित किया जाएगा, वहीं मैं रहूँगी।” इसके बाद से, यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है।

स्थानधारी देवी मंदिर
स्थानकलियासौड़, श्रीनगर, गढ़वाल, उत्तराखंड
देवी का रूपमाँ काली (रक्षक रूप)
मूर्ति स्थितिकेवल ऊपरी भाग (मस्तक से कमर तक)
पूजन समयसुबह 6 बजे – शाम 8 बजे तक

⚠️ 2013 की घटना और देवी का क्रोध

2013 में जब धारी देवी की मूर्ति को एक बाँध परियोजना के कारण अस्थायी रूप से हटाया गया, तब कुछ घंटों के अंदर ही उत्तराखंड में भीषण केदारनाथ बाढ़ आई। इस घटना को स्थानीय लोग देवी के क्रोध से जोड़ते हैं और मानते हैं कि माँ धारी देवी को छेड़ना अशुभ होता है। इसके बाद मूर्ति को पुनः पुराने स्थान पर स्थापित किया गया।


🛤️ कैसे पहुँचें?

धारी देवी मंदिर, श्रीनगर (गढ़वाल) से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। पास में ऋषिकेश, श्रीनगर और देवप्रयाग जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी हैं, जिन्हें यात्रा में जोड़ा जा सकता है।


🌄 धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम

धारी देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह स्थान अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। अलकनंदा नदी का शोर, चारों ओर फैली पहाड़ियाँ और शांति का वातावरण इस स्थान को और भी पवित्र बना देता है।